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Wednesday 15 February 2017

खनिज तत्व (Mineral Elements)





                            खनिज तत्व (Mineral Elements)


                                    कोबाल्ट (Cobalt)

कोबाल्ट विटामिन 'बी 'का अंश है। फेफड़ों में ऑक्सीजन ग्रहण किये जाने क्रिया में कोबाल्ट की उपस्थिति सहायक होती हैं। इसकी कमी के अभी किसी रोग की सम्भावना का पता नहीं लगा हैं। 



                                मैंगनीज (Manganese)

यह तत्व कार्बोहाइड्रेट,प्रोटीन व वसा के चयापचय में काम करने वाले एन्जाइम को क्रियाशील बनाता है। मैंगनीज के अभाव में प्रजनन क्षमता घटती है तथा बच्चे जन्म लेते भी हैं वे अल्प समय तक ही जीवित रह पाते हैं। अस्थि विकास ठीक नहो पाने के कारण शारीरिक विकृति आ जाती है। 
शरीर में बाँझपन आ जाता है। 
मैंगनीज की उपस्थिति अनाज,दाल,सरसों के पत्ते,नीबू,सन्तरा व बादाम आदि में रहती है। 

कार्य :

1)- यह तत्व संतानोतपत्ति व पिट्यूरी गर्भावस्था के हार्मोनों को प्रभावित करता हैं। 
2)- यह ऊतकों में उत्तपन्न कार्बनडाइ-ऑक्साइड को फेफड़ों तक पँहुचाने में सहायक भूमिका अदा करता हैं। 




                                 फ्लुओरिन (Fluorine)



फ्लुओरिन दाँतों की केरीज (Caries)रोगों से रक्षा करने का कार्य करता है। यद्यपि इसकी काफी कम मात्रा आवश्यक होती है ,परन्तु दाँत व अस्थियों में यह विभिन्न संक्रामक व कैरिज रोगों को रोकने में सहायक हैं। 
      आहार में इसकी कम मात्रा होने से द्न्तक्षरण या दाँतों में काला पदार्थ जमना प्रारंभ हो जाता है। आहार में इसकी मात्रा अधिक होने पर दाँत स्वस्थ नहीं रह पाते। यह अवस्था दन्त फ्लोरोसिस (DentalFluorosis)की 
कहलाती हैं। 
       दाँतों की शक्ति व चमक जाती रहती है। दाँत चूने की तरह सफेद लगने लगते हैं व सरलता से टूट जातें है। दाँतो का एनामेल (Enamel)भाग खुरदरा हो जाता है। दाँतों में गडढे से मालूम होते है। फ्लुओरिन की अधिक समय तक अधिकता भूख कम क्र देती है जिसका प्रभाव अस्थियों में भी पड़ता है। 
        इस प्रकार फ्लुओरिन की मात्रा (0.5 PPM)भी नुकसानदायक है तो अधिक मात्रा (3-5 PPM)भी। इसकी सन्तुलित व औसत मात्रा (1-2 PPM)
ही लेनी चाहिए। 

प्राप्ति के स्रोत :

जल फ्लुओरिन की प्राप्ति का उत्तम स्रोत है। मृदु जल फ्लुओरिन से मुक्त रहता है। जबकि कठोर जल में इसकी कुछ मात्रा उपस्थित रहती है। समुद्री मछली व चाय में इसकी कुछ मात्रा पायी जाती है। स्थान विशेष की मिट्टी व जल में फ्लुओरिन होने पर वहाँ उगने वाली तरकारियों में भी यह तत्व पाया जाता है। दूध व अनाज में भी इसकी अल्प मात्रा उपस्थित रहती है। 





                                        जस्ता (Zinc)


जस्ते की उपस्थिति यकृत,अस्थियों दाँत व पक्वाशय ग्रन्थि में उपस्थित रहती है। रक्त प्लाज्मा या सीरम में भी इसकी कुछ मात्रा पायी जाती है। 

कार्य :

1)- यह तत्व सन्तानोत्तपत्ति व पिट्यूटरी ग्रन्थि के हार्मोनों को प्रभावित करता है। 
2)- यह ऊतकों में उत्तपन्न कार्बनडाई-ऑक्साइड को फेफड़ों तक पहुँचाने में सहायक भूमिका निभाता है। 
3)-जस्ते की न्यून मात्रा ही पर्याप्त रहती है। लगभग 10-15 मिग्रा जस्ता आहार में आवश्यक होता है। 
4)- समुद्री जन्तु तथा वनस्पतियों में यह तत्व प्रचुर मात्रा में मिलता है। दूध,यकृत,अण्डा,खमीर में भी कुछ मात्रा जस्ता की रहती है।