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Sunday 31 May 2015

विटामिन (बी 12 ) (Vitamin B12 or Cyanocobalamine)



विटामिन (बी 12 )

(Vitamin B12 or Cyanocobalamine)



विटामिन बी 12 की खोज परनीशियस एनीमिया रोग का निदान ढूँढ़ते समय हुई। प्रयोगों द्वारा देखा गया कि रोगी व्यक्ति को यकृत खिलाने से स्थिति में सुधार होता है। बाद में ज्ञात हुआ कि यकृत में उपस्थित बी 12 इस रोग के उपचार में सहायक है। इसे कोबामाइड (Cobamide),एंटीपरनीशियस एनीमिया फेक्टर (Antipernicious Anaemia Fector),एक्स्ट्रीन्सीक फेक्टर ऑफ केस्टल (Extrinsic Fector of Castle)के भी नामों से संबोधित करते है। मिनोट तथा मर्फी (Minot & Murphy)को 1934 में इस विटामिन की खोज के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया। 1948 में स्मिथ तथा साथियों के द्वारा इसे क्रिस्टल रूप में प्राप्त किया गया। विटामिन बी 12 प्राणियों की प्रायः सभी कोशिकाओं में मिलता है। मनुष्य को इसकी पूर्ति के लिए भोजन पर निर्भर रहना पड़ता है किन्तु कुछ प्राणी आँतों में इसका निर्माण कर सकते हैं। ये पौधों में नहीं मिलता है। 


कार्य :

1)- यह प्रोटीन के चयापचय में सहायक होता है। 
2)- अस्थि मज्जा में रक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहायक है। 
3)- नाड़ी ऊतकों की चयापचयी क्रिया में सहायक है। 


स्रोत :


प्रमुख रूप से जन्तु ऊतकों द्वारा ही प्राप्त होता है। इसके मुख्य स्रोत यकृत ,अण्डा ,माँस ,मछली ,दूध आदि है। 
                  

फोलिक एसिड (Folic Acid) कोलीन (Choline) इनासिटॉल (Inositol) पैराअमीनो बैंजोइक एसिड (Para amino Benzoic Asid)




फोलिक एसिड 

 (Folic Acid)



इसे टेरिल ग्लुटामिक एसिड (Pteroylglutamic Acid)भी कहते है। डे (Day)ने इस पोषक फेक्टर के अस्तित्व का सुझाव दिया। माइकेल,स्नेल तथा विलियम्स (Mitchell,Snell & Williams)ने इसे फोलिक नाम दिया क्योंकि इस विटामिन को पालक की पत्तियों (L.Folium)से प्राप्त किया गया था। 


कार्य :

कोशिकाओं के केन्द्रक में पाये जाने वाले न्यूक्लियोप्रोटीन के निर्माण में महत्त्वपूर्ण कार्य करता हैं। लाल और श्वेत रक्त कणिकाओं के निर्माण में भी इसका योगदान रहता है। 


प्राप्ति के स्रोत :

खमीर ,गेँहू व चावल की ऊपरी पर्त (Germ)दाल ,हरी पत्ते वाली सब्जियों में पाया जाता है। 






  कोलीन 

(Choline)



यह एक महत्त्वपूर्ण मेटाबोलाइट (Matabolite)है। यह शरीर द्वारा संश्लेषित किया जाता है। यह फास्को लिपिड्स का एक प्रमुख अवयव है। यह तन्त्रिका-तन्त्र (Nervous system)में होता है। 


कार्य :

इसका प्रमुख कार्य यकृत में अधिक वसा के संग्रहण को रोकना हैं। नाड़ी ऊतकों की संवेदना क्षमता बनाए रखने के अतिरिक्त भी अनेक शरीर नियामक कार्य करता है। 


प्राप्ति के स्रोत :


यकृत ,गुर्दे ,साबुत अनाज ,दालें ,माँस ,दूध व अण्डे के पीले भाग में प्रमुख रूप से पाया जाता है। 





इनासिटॉल 

(Inositol)


जान्तव व वानस्पतिक ऊतकों में यह विटामिन पाया जाता है। मनुष्य में इसकी कमी से अभी तक किसी रोग के होने की जानकारी नहीं मिली हैं। इसकी कमी से Mice में गंजापन आ जाता है। 


कार्य :

इसकी आहार में पर्याप्त मात्रा लेते रहने पर यकृत में अधिक वसा एकत्रित नहीं हो पाती है। 


प्राप्ति के स्रोत :

विभिन्न फल ,सब्जियाँ ,साबुत अनाज ,नट्स ,खमीर ,यकृत ,दूध व दालों में इसकी उपस्थिति होती है। 




  पैराअमीनो बैंजोइक एसिड 

(Para amino Benzoic Asid)



यह भी जान्तव व वानस्पतिक पदार्थ दोनों में ही पाया जाता है। मनुष्य में इसकी कमी से होने वाले रोगों तथा इसके कार्यों का अभी तक ज्ञान नहीं किया गया। इसकी प्राप्ति खमीर ,दूध ,यकृत ,चावल व गेँहू से होती है। 









Saturday 30 May 2015

बायोटिन (Biotin)




   बायोटिन

   (Biotin)


इसे विटामिन 'एच ' भी कहते हैं। 1916 में बेटमेन (Bateman)ने बताया कि कच्चे अण्डे में एक क्षारीय प्रोटीन एवीडीन (Avidin)होता है जो बायोटिन को नष्ट कर देता है लेकिन पके अण्डे में ऐसा नहीं होता हैं। अतः पके अण्डे खिलाने पर अण्डे की सफेदी का रोग (Egg White Injury)नहीं होती है। 


कार्य :


1)- यह  (कार्बनडाइ-आॅक्साइड)स्थिरीकरण में कार्बोक्सीलेज एन्जाइम के साथ को-एन्जाइम का कार्य करता है ;जैसे -यूरिया निर्माण में,पिरिमिडीन के संश्लेषण में,वसीय मात्रा के संश्लेषण आदि में। 
2)- यह मुख्यतः त्वचा को स्वस्थ बनाए रखने का महत्त्वपूर्ण कार्य करता है। 
3)- यह कोशिकाओं के स्वास्थ्य व निर्माण कार्य  में भी सहायता करता है।



स्रोत :


सामान्यतः दालें,नट्स ,खमीर आदि में पाया जाता है। यकृत,अण्डा,माँस,मूँगफली ,सोयाबीन आदि इसके प्रमुख स्रोत हैं। 


  

पेन्टोथेनिक एसिड (Pentothanic Acid)




  पेन्टोथेनिक एसिड 

(Pentothanic Acid)



इसे एंटी डमेंटिटिस फेक्टर (Antidermatitis Factor)भी कहते हैं। 1933 में विलियम्स तथा साथियों द्वारा इस विटामिन को क्रिस्टलीय रूप में प्राप्त किया तथा 1940 में स्टिलर (Stiller)द्वारा संश्लेषित किया गया। प्राणी पोषण में इस विटामिन की उपयोगिता जूक्स तथा होली (Jukes &Woolley)द्वारा स्थापित की गई। 



कार्य :


बच्चों की शारीरिक वृद्धि में सहायक है। यह विटामिन भी को-एन्जाइम COD की भाँति कार्य करता है। शरीर में कार्बोज,प्रोटीन तथा वसा के चयापचय की क्रियाओं में सहायता करता है। 


स्रोत :


सूखे खमीर,यकृत,चावल की ऊपरी पर्त,गेंहूँ का छिलका तथा अंडे के पीले भाग,दूध,शकरकन्द में मुख्य रूप से पाया जाता हैं। 



Friday 29 May 2015

विटामिन 'बी 6 'या पायरीडॉक्सिन (Vitamin 6 or Pyridoxin)



विटामिन 'बी6 'या पायरीडॉक्सिन 

     (Vitamin 6 or Pyridoxin)




इसे रेट एंटीडमेंटिटिस फेक्टर (Antidermatits Factor)भी कहते है क्योंकि 1934 में गार्गी (Gyorggi)नामक वैज्ञानिक ने चूहों के डमेंटिटी रोग को इस विटामिन को देकर ठीक किया। स्टीलर (Stiller)ने 1939 में इसे संश्लेषित रूप को पायरीडॉक्सिन (Pyridoxin)कहते है। प्रकृति में भी इसके दो रूप होते हैं -पायरीडॉक्सिन (Pyridoxin)तथा पायरीडॉक्ससामीन (Pyridoxamine)इन तीनो रूपों को विटामिन B6 कहते हैं। 


पायरीडॉक्सिन के कार्य :



शरीर में को-एन्जाइम की भाँति कार्य करने वाला विटामिन है। यह नाड़ी संस्थान व लाल रक्त कणिकाओं को स्वस्थ बनाए रखने में महत्वपूर्ण कार्य करता है। यह ट्रिप्टोफेन अमीनो एसिड को नायसिन में परिवर्तित करने में सहायक हैं। 


पायरीडॉक्सिन प्राप्ति के स्रोत :




सूखी खमीर, गेहूँ के बीजांकुर,माँस,यकृत,दालें,सोयाबीन,मूँगफली,अण्डा,दूध,दही,सलाद के पत्ते,पालक आदि इसके प्रमुख स्रोत हैं।  
   


नायसिन या निकोटिनिक अम्ल(Naicin or Nicotinic Acid)




    नायसिन या निकोटिनिक अम्ल 

     (Naicin or Nicotinic Acid)


इसे निकोटिनिक एसिड,निकोटिनामाइड,नियासिनामाइड आदि नामों से भी संबोधित किया जाता है। इस विटामिन की खोज पैलाग्रा रोग के कारण खोजते समय हुई। सर्वप्रथम अमेरिका के वैज्ञानिक गोल्ड बर्गर (Gold Berger)ने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि कुत्तों में काली जीभ के लक्षण मनुष्य में उत्पन्न पैलाग्रा के समान ही है। पैलाग्रा में व्यक्ति की त्वचा का रंग भद्दा हो जाता है,मस्तिष्क में विकार आने के फलस्वरूप उसकी मृत्यु भी हो सकती है। उसने ज्ञात किया कि भोजन में अमीनो एसिड की न्यूनता ही इस रोग का कारण है। भोजन में खमीर की मात्रा देकर रोग में सुधार देखा गया। खमीर में उपस्थित नायसिन तत्व को पैलाग्रा दूर करने वाला तत्व (Pellagra Preventing Factor or P.P. Factor)नाम दिया गया। 




नायसिन के कार्य :



नायसिन त्वचा,पाचन संस्थान तथा नाड़ी संस्थान की सामान्य क्रियाशीलता के लिए अत्यन्त आवश्यक है। यह दो को-एन्जाइम (NAD,NADP)का निर्माण करती है। यह विटामिन शरीर में ग्लूकोज के अवशोषण व वसा के विखण्डन के फलस्वरूप बने फैटी अम्ल व ग्लिसरॉल के पुनः संगठन में भाग लेता है। शरीर में इसकी उपस्थिति पैलाग्रा से बचाव करती है। 





नायसिन प्राप्ति के स्रोत :


वनस्पति मे:

अनाज,दाल व सूखे मेवों में यह पाया जाता है। मूँगफली में यह बहुतायत में मिलता है। 

जंतुओं में :

सूखा खमीर इसकी प्राप्ति का अनुपम स्रोत है। माँस,व मछली में भी पाया जाता है 

Wednesday 27 May 2015

विटामिन 'बी ' या राइबोफ्लेविन (riboflavin)



       (विटामिन 'बी ' या  राइबोफ्लेविन )

                   (Riboflavin)


विटामिन 'बी 'की खोज के समय माना गया कि बेरी-बेरी रोग को दूर करने वाला एक ही विटामिन होगा,परन्तु बाद में ज्ञात हुआ कि बेरी-बेरी को दूर करने वाले एक नहीं बल्कि दो विटामिन होते है। एक ताप के प्रति अस्थिर 
(विटामिन 'बी 1')जो बेरी-बेरी को वास्तव में दूर करता है तथा दूसरा ताप के प्रति स्थिर विटामिन 'बी 2'जो चूहों की वृद्धि में सहायक होता है। अन्य प्रयोगो से ज्ञात हुआ कि ताप के प्रति स्थिर विटामिन कई विटामिनों का मिश्रण है। 1932 में  वारबर्ग और क्रिश्चियन ने यीस्ट में से एक से नारंगी पीले रंग के चमकने वाले पदार्थ को अलग किया गया तथा इसे रिबोफ्लेबिन नाम दिया गया। 



राइबोफ्लेबिन के कार्य :



जिस प्रकार थायमिन-कार्बोहाइड्रेट के चयापचय में भाग लेता है उसी प्रकार राइबोफ्लेबिन प्रोटीन,कार्बोहाइड्रेट व वसा के चयापचय में सहायक होता है। राइबोफ्लेबिन नायसिन निर्माण में भी सहायक कार्य करता है। आँख की रेटिना पर्त में स्वतन्त्र रूप से राइबोफ्लेबिन पाया जाता है जो प्रकाश से क्रिया करके आँख की नाड़ी को उत्तेजना प्रदान करती है। राइबोफ्लेबिन की कमी से शरीर की वृद्धि रूक जाना,अशांत स्वभाव व आयु में कमी आदि रूप परिलक्षित होते है। 


राइबोफ्लेबिन प्राप्ति के स्रोत :


राइबोफ्लेबिन विभिन्न वानस्पतिक व जान्तव भोज्यों में उपस्थित रहता है,परन्तु यीस्ट,माँस,मछली,दूध व अनाजों में इसकी अधिक मात्रा पायी जाती है। यह जंतुओं के यकृत में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। अनाज में इस सत्व की मात्रा कम ही होती है। 


                        

विटामिन 'बी 1' या थायमिन (Thiamine)


              (विटामिन 'बी ' काम्पलैक्स )


                             
यह एक विटामिन न होकर कई विटामिनों का समूह है। इन सबको सम्मिलित रूप से 'बी 'काम्पलैक्स कहते हैं। इस समूह के विटामिन निम्न प्रकार है। 



1)- विटामिन 'बी 1' या थायमिन (Thiamine)


थायमिन विटामिन की खोज बेरी -बेरी रोग के उपचार ढूँढ़ते समय हुई।  नेवी के यात्रियों को यह रोग बहुत होता था क्योकिं उनके आहार में शाक -सब्जियों का अभाव होता था। 1885 में इस बीमारी को सर्वप्रथम टकाकी नामक डॉक्टर द्वारा पहचाना गया। उसने उन नेवी के लोगो के आहार में परिवर्तन करके स्थिति में सुधार किया। 1926 में डोनथ व जैक्सन ने चावल की ऊपरी पर्त में से इस विटामिन को पृथक किया जिससे बेरी-बेरी रोग का सफलतापूर्वक उपचार किया गया। 1931 में विण्डास (windaus)ने विटामिन B1को खमीर से पृथक करके उसकी रचना तथा रासायनिक गुणों पर प्रकाश डाला। गंधक की उपस्थिति के कारण इसका नाम थायमिन रखा। 1930 में विलियम्स ने प्रयोगशाला में विटामिन B1को संश्लेषित किया। 



थायमिन के कार्य :


1)- यह विटामिन कार्बोहाइड्रेट के चयापचय में सहायक होता है। कार्बोहाइट्रेट से ऊर्जा का निर्माण होते समय मध्यवर्ती पदार्थ पिरूबिक एसिड बनता है। यह पिरूबिक एसिड को एसीटेट में परिवर्तित कर देता है तथा आगे की क्रिया में कार्बन डाई-ऑक्साइड का निर्माण करता है। 
2)- पाचन संस्थान की माँसपेशियों की गति को सामान्य रखता है जिससे भूख सामान्य रहती है। 
3)- तन्त्रिका तन्त्र के भली-भाँति कार्य करने में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है। 



थायमिन प्राप्ति के स्रोत :


विभिन्न अनाज व दालों के बीजांकुर (germ)खमीर व सूखे मेवे थायमिन प्राप्ति के अच्छे स्रोत हैं। माँस,मछली,अण्डा,दूध व दूध से बने पदार्थों में भी यह विटामिन उचित मात्रा में मिल जाता हैं। 





Wednesday 20 May 2015

तरबूज का जूस (Watermelon Juice)










तरबूज के फ्रेश जूस में प्रोटीन,कार्बोहाइट्रेट,फाइबर,विटामिन्स,कैल्शियम जैसे मिनरल्स भी मौजूद हैं जो हमारे शरीर को चुस्त दुरस्त रखते है। तरबूज हमारे शरीर में पानी की कमी को भी पूरा करता है। इसलिए तरबूज का जूस अपने साथ-साथ अपने परिवार के सदस्यों और अपने बच्चों को अवश्य पिलाएँ। 




सर्विंग्स - 4 



सामग्री :

तरबूज (छोटे टुकड़ों में कटा )- 6 कप 
ताज़ी पुदीना पत्ती - 1/2 कप 
चीनी पाउडर - 4 छोटी चम्मच 
नीबू का रस - 4 टेबलस्पून 
काला नमक - 1 छोटी चम्मच 
भुना जीरा पाउडर - 1 छोटी चम्मच 
कुटी बर्फ - 1 कप 




विधि :



1)- ब्लेंडर में तरबूज के टुकड़े,पुदीना पत्ती,चीनी,काला नमक,नीबू का रस और जीरा पाउडर डालकर बारीक़ पीस लें और छन्नी से छान लें। 
2)- चार गिलासों में कुटी बर्फ और छाना हुआ तरबूज का जूस डालें ऊपर से पुदीना पत्ती से सजाएँ। शीघ्र ही ठंडा-ठंडा जूस सर्व करें। 










Monday 18 May 2015

लेमन एंड जिंजर फ्रेश कप (Lemon and Ginger fresh cup)











आप इस फ्रेश कप को सुबह पिए तो आप अपना वजन कंट्रोल में रख सकते है और अपने आपको तरो-ताजा भी रख सकेगें। 




सर्विंग्स - 1 


सामग्री :



नीबू का रस - 2 छोटी चम्मच 
अदरक का रस - 2 छोटी चम्मच 
शहद - 1 छोटी चम्मच 
काला नमक - 1 पिंच 
ठंडा पानी - 1 कप 




विधि :



1)- सभी सामग्री को अच्छी तरह मिलाएँ और ठंडा-ठंडा  नीबू और अदरक फ्रेश कप पिएँ। 









Wednesday 13 May 2015

मूँग दाल सूजी ढोकला (Moong Dal Suji Dhokla)










सामग्री :



धुली मूँग दाल - 1कप 
सूजी - 1/4 कप 
अदरक (बारीक़ कटी )- 1 टेबलस्पून 
हरी मिर्च - 2 
साइट्रिक एसिड - 1/2 छोटी चम्मच 
चीनी - 2 छोटी चम्मच 
नमक स्वादानुसार 
ईनो फ्रूट साल्ट - 1 1/2 छोटी चम्मच 


तड़का के लिए :


तेल - 2 छोटी चम्मच 
राई - 1 छोटी चम्मच 
हरा धनिया (बारीक़ कटा )- 2 टेबलस्पून 



विधि :


1)- दाल को धोकर चार से पाँच घंटे के लिए पानी में भिगो दें। 
2)- दाल से पानी निकाल दें और मिक्सर जार में दाल,अदरक,हरी मिर्च और आधा कप पानी डालें और बारीक़ पीस कर मुलायम पेस्ट तैयार कर लें










3)- दाल पेस्ट में सूजी,नमक,साइट्रिक एसिड और चीनी डालकर अच्छी तरह मिलाएँ। अलग रख दें। 
4)- आपको जिस बर्तन में ढोकला बनाना हैं उसमें दो कप पानी डालकर गैस पर गरम करने के लिए रख दें और जाली का स्टैण्ड इसी पानी वाले बर्तन में रख दें। जिस बर्तन में ढोकले का घोल डालना है उस बर्तन को तेल लगाकर चिकना कर लें। 
5)-दाल पेस्ट में ईनो फ्रूट साल्ट डालकर अच्छी तरह मिला लें और शीघ्र ही चिकनाई लगे बर्तन में डालकर गरम पानी वाले बर्तन में स्टैण्ड में रखें और ढककर मीडियम आँच पर बीस से पच्चीस मिनट के लिए भाप में पकाएँ। 









6)- पच्चीस मिनट बाद आँच बन्द कर दें और ढोकले वाले बर्तन को निकाल कर ठण्डा कर लें। 
7)- पैन में तेल गरम करें उसमें राई डालकर राई के कड़कने तक पकाएँ और तड़के को ढोकले के ऊपर डाल दें। ऊपर से हरा धनिया डाल दें। 









8)-मूँग दाल सूजी ढोकला तैयार हैं। अपने मन पसन्द आकार में ढोकले के टुकड़े काट लें। 
9)- ताजा-ताजा ढोकला अपनी पसन्द की चटनी के साथ परोसे। 










Sunday 10 May 2015

लौकी (घिया )कोफ्ता करी (Lauki (Ghiya) Kofta Curry )







सामग्री :


कोफ्ते के लिए :



लौकी (घिया कसी हुई )- 2 कप 
काली मिर्च पाउडर - 1/2 छोटी चम्मच 
लहुसन पेस्ट - 1 छोटी चम्मच 
बेसन - 3 टेबलस्पून 
नमक स्वादानुसार 


ग्रेवी के लिए :


प्याज (बारीक़ कटा )- 1 बड़ा 
पिसा टमाटर - 1 कप 
लहुसन पेस्ट - 1 छोटी चम्मच 
अदरक पेस्ट - 1 छोटी चम्मच 
हल्दी पाउडर - 1/2 छोटी चम्मच 
लाल मिर्च पाउडर - 1/2 छोटी चम्मच 
गरम मसाला पाउडर - 1/2 छोटी चम्मच 
नमक स्वादानुसार 
तेल - 1 छोटी चम्मच 
हरा धनिया (बारीक़ कटा )- 2 टेबलस्पून 



विधि :


कोफ्ते बनाने की :


1)- लौकी को निचोड़ कर उनका पानी निकाल दें। उसमें काली मिर्च पाउडर लहुसन पेस्ट,बेसन और नमक अच्छी तरह मिलाएँ और मिश्रण तैयार कर लें। मिश्रण के छोटे-छोटे गोले बनाए और थोड़ा चपटा करके टिक्की का आकार दें। 
2)- नॉनस्टिक पैन को गरम करें उसमें हाथों से थोड़ा तेल छिड़ककर कपड़े से पोंछ दें। उसमें टिक्कियाँ रखे और ढक्क्न लगाकर मध्यम आँच पर दो मिनट तक पकाएँ। ढक्क्न खोलें टिक्कियाँ पलटे फिर ढक्क्न लगाकर दो मिनट तक और पकाएँ। आँच बन्द कर दें कोफ्ते तैयार हैं। अलग रख लें। 


ग्रेवी बनाने की :



1)- पैन में तेल डालकर गरम करें। उसमें प्याज डालकर दो मिनट तक भूने। अदरक और लहुसन का पेस्ट डालकर एक मिनट तक भूने । अब पिसा टमाटर डालकर एक मिनट तक पकाएँ हल्दी पाउडर ,लाल मिर्च पाउडर ,गरम मसाला पाउडर ,नमक और एक टेबलस्पून पानी डालें। मसाले को एक मिनट तक भूने। एक कप पानी डालकर ग्रेवी को उबलने दें। हरा धनिया डालकर आँच बन्द कर दें। 
2)- सर्विश डिश में कोफ्ते रख कर उस पर गरम-गरम ग्रेवी डालें। हरी धनिया की पत्तियों से सजाए। गरमागरम सर्व करें। 






Wednesday 6 May 2015

फायदे मौसमी फल और सब्जियों के












फायदे मौसमी फल और सब्जियों के :


आज हर छोटे बड़े शहरों में ताज़े फल व सब्जियाँ मिलती हैं। मेट्रो शहर में सितंबर तक तरबूज,खरबूजा और दिसंबर तक आम मिलता है। लेकिन मौसमी फलों का इस्तेमाल उनके सही मौसम में ही करना चाहिए, क्योंकि तभी उनके पोषक तत्वों की मात्रा सबसे अधिक होती है। मई और जून आम का मौसम होता है। इस मौसम में शरीर को विटामिन सी,बीटा-कैरोटीन और एंटी ऑक्सीडेंट जैसे पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनकी पूर्ति आम से आसानी से हो जाती है इसलिए आम का सेवन सन्तुलित मात्रा में जरूर करना चाहिए। सर्दियों में संतरे,गाजर और हरी पत्तेदार सब्जियों का सेवन जरूरी होता है। इससे शरीर को विटामिन सी,बी और के मिलते है जो शरीर के लिए अति आवश्यक है। 




ब्रॉक्ली : 





जुलाई से अक्टूबर तक ब्रॉक्ली का मौसम होता है। इसमें मौजूद इंडोल्स (Indoles) और सल्फोराफेन (Sulforaphane) जैसे दो महत्त्वपूर्ण फाइटोन्यूट्रिएंट्स पाए जाते है,जो कैंसर के खतरों को कम करने में मदद करते हैं। 




मेथी और सरसों का साग :






इसके इस्तेमाल से खून की कमी और सांस संबंधी समस्या दूर होती है यह ब्लड शुगर को भी नियंत्रित करने में भी सहायता मिलती है। 



संतरा :




इसमें विटामिन सी ,बीटा कैरोटीन ,पोटैशियम और कैल्शियम होता है। सर्दियों में इसके इस्तेमाल से सर्दी -जुकाम जैसी समस्या नहीं होती है। इसमें फोलेट प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,जो गर्भवती स्त्रियों के लिए उपयोगी है। 


पालक :




पालक में विटामिन ए,सी,के,बी 2 और बी 6 पाये जाते है। इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट शरीर को प्री-रेडिकल्स के नुकसान देह प्रभावों से बचाते हैं। 




खीरा :




गर्मियों में खीरे के सेवन से शरीर में पानी की कमी नहीं होती,क्योंकि इसमें 96प्रतिशत पानी होता है। यह विटामिन बी,सी ,पोटैशियम,फॉस्फोरस आयरन आदि से भरपूर होता है। इसे प्रतिदिन खाने से इंसुलिन लेवल नियंत्रित रहता है। कब्ज,एसिडिटी,सीने में जलन से इसके सेवन से लाभ पहुँचता है। यह खाना पचाने में भी मदद करता है। 




आम :




गर्मियों में आम सबसे ज्यादा पसन्द किया जाता है। इसमें विटामिन सी और बी सबसे अधिक पाए जाते है। यह गरिष्ठ होता है,इसलिए इसे मैंगो शेक के रूप में लेने से लाभ अधिक होता है। इस मौसम में थकान और डिहाइड्रेशन से बचने के लिए सीमित मात्रा में आम का प्रयोग जरूरी हैं। 



तरबूज और खरबूजा :





पानी और खनिज के लिए  तरबूजा और खरबूजा सबसे बढ़िया स्रोत माना जाता है इनमें 95 प्रतिशत पानी के साथ विटामिन सी और ई पाए जाते है, जो त्वचा के लिए लाभदायक होते हैं। इसके सेवन से ब्लड प्रेशर सामान्य रहता है। यह दिल और किडनी की सेहत के लिए भी फायदेमंद हैं। गर्मियों में इनका संतुलित मात्रा में सेवन जरूर करना चाहिए। 



स्ट्रॉबेरी :



जून से अगस्त तक मिलने वाली स्ट्रॉबेरी में मौजूद इलाजिक एसिड और एण्टोसाइनाडिंस कैंसर,स्ट्रोक और ह्रदय रोगों से बचाव कने में मदद करतें हैं इसमें एंटीऑक्सीडेंट के अलावा एन्टीइन्फ्लमेट्री गुण भी होते हैं। स्ट्रॉबेरी आँखों,हड्डियों,पाचन तंत्र और बीपी संबंधी रोगों से बचाए रखती हैं। इसमें विटामिन सी,मैग्नीशियम और फोलिक एसिड भी पाए जाते है। 




गाजर :



ठंड और गर्मी दोनों ही मौसम में ही गाजर मिलती हैं। सर्दी में लाल और गर्मी में नारंगी गाजर मिलती है,जिसमें कैरोटीन पाया जाता हैं। इसमें विटामिन के भी पाया जाता है,जो आँखों की रोशनी बढ़ाता है। सर्दियों में इसका जूस लाभदायक होता हैं। 



लीची :





गर्मियों में मिलने वाली लीची लू के प्रकोप से बचाती है। इसमें विटामिन सी,ए व बी भी पाया जाता है,तत्काल ऊर्जा प्राप्त करने के लिए लीची कारगर होती है। 




मटर :




मटर में विटामिन बी 1,बी 6 और बी 3 पाए जाते है,जो प्रोटीन,कार्बोहाइट्रेट और लिपिड मेटाबॉलिज्म के लिए जरूरी हैं। यह प्रोटीन,आयरन और विटामिन का अच्छा स्रोत है। 
























                 
                                     
                         
                       




Friday 1 May 2015

मूंग दाल चावल मसाला डोसा(Moong dal chaval masala dosa )










सामग्री :



डोसे के लिए :

धुली मूँग दाल - 1 कप 
चावल - 1/2 कप 
हरी मिर्च - 2 
अदरक (बारीक़ कटा )-2 टेबलस्पून 
नमक स्वादानुसार 
तेल डोसे सेकने के लिए 



भरने के लिए :

आलू ( उबला और टुकड़े में कटे )- 2 बड़े 
शिमला मिर्च (बारीक़ कटी )- 1/4 कप 
हरी मटर (उबली )- 1/2 कप 
प्याज (बारीक़ कटा )- 1 बड़ा 
हरी मिर्च (बारीक़ कटी )- 2 
गरम मसाला पाउडर - 1/2 छोटी चम्मच 
हल्दी पाउडर - 1/2 छोटी चम्मच 
धनिया पाउडर - 1 छोटी चम्मच 
नीबू का रस - 1टेबलस्पून 
राई - 1 छोटी चम्मच 
हरा धनिया (बारीक़ कटा )- 2 टेबलस्पून 
नमक स्वादानुसार 
तेल - 2 टेबलस्पून 



विधि :

1)- दाल और चावल को धोकर पानी में चार से पाँच घंटे के लिए भिगो दें। 
2)- दाल और चावल से पानी निकाल दें अदरक,हरी मिर्च और आधा कप पानी के साथ मिक्सर में बारीक़ पीस लें। घोल में नमक मिला लें। अगर घोल बहुत ज्यादा गाढ़ा हैं तो थोड़ा पानी मिला लें। अलग रख दें। 
3)- एक पैन में तेल गरम करें उसमें राई और करी पत्ता डालें और राई के चटकने के बाद उसमें प्याज और हरी मिर्च डालकर दो मिनट तक भूने। आलू,शिमला मिर्च और मटर डालकर अच्छी तरह चलाएं। हल्दी पाउडर,गरम मसाला पाउडर,नमक और नीबू का रस डालकर अच्छी तरह 
से मिलाएँ और एक मिनट तक भूने। ढक्क्न लगाकर मध्यम आँच पर दो मिनट तक पकाएँ। आँच बंद कर दें अलग रख दें। 









4)- नॉन स्टिक तवा गरम करें उसमें थोड़े पानी के छीटें देकर उसको कपड़े से पोंछ दें। तवे पर एक बड़े चम्मचे या कटोरी से घोल डालें और उसे चम्मचे से बढ़ाते हुए गोलाई में फैलाए।डोसे के किनारे पर चम्मच से तेल डालें।डोसे के बीच में दो बड़ा चम्मच आलू मसाला फैलाए और डोसे को एक मिनट तक ब्राउन होने तक सेकें अब डोसे को रोल कर दें। मूंग दाल चावल मसाला डोसा तैयार हैं। 



















5)- गरमागरम डोसा अपनी पसन्द की किसी भी चटनी के साथ परोसे।