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Sunday 26 March 2023

शरीर निर्माणक भोज्य तत्व

                                  शरीर निर्माणक भोज्य तत्व 


वह भोज्य तत्व जो शरीर में निर्माण करने का कार्य करते हैं, शरीर निर्माणक तत्व कहलाते हैं। शरीर निर्माणक भोज्य तत्वों में प्रोटीन प्रमुख है। हमारा शरीर जिसकी इकाई कोशिका है, का निर्माण प्रोटीन के द्वारा ही होता है। 
      विभिन्न वृद्धि की अवस्थाओं जैसे बाल्यावस्था, किशोरावस्था तथा गर्भावस्था में अंगों की वृद्धि तीव्र गति से होती है। अतएव इन अवस्थाओं में विशेष रूप से अधिक प्रोटीन की आवश्यकता होती है। दूसरी अवस्थाओं  में, जबकि वृद्धि नहीं होती उस समय शरीर में होने वाली निरन्तर टूट-फूट की मरम्मत के लिए प्रोटीन की आवश्यकता होती है। हमारे शरीर में जल बाद दूसरा तत्व प्रोटीन ही होता है जिससे शरीर बना होता है। हर अंग जैसे - अस्थियाँ, माँसपेशियाँ, दाँत, त्वचा, बाल, रक्त का निर्माण प्रोटीन से ही होता है। 
        प्रोटीन के बाद दूसरा निर्माणक भोज्य तत्व खनिज  है। इन निर्माणक पदार्थों में कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, व  आयोडीन प्रमुख हैं। कैल्शियम, फॉस्फोरस  दाँत  व  अस्थियों के निर्माण में मुख्य रूप से भाग लेते हैं। आयोडीन भी शरीर एक प्रमुख ग्रन्थि थॉयराइड का निर्माण करती हैं। आयोडीन की कमी से इस ग्रंथि का पूर्ण निर्माण नहीं हो पाता तथा शारीरक व मानसिक विकास अवरूद्ध हो जाता है। रक्त की हीमोग्लोबिन निर्माण में लोहा ही मुख्य रूप से भाग लेता है। 
       शरीर निर्माणक तत्वों में जल का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है। शरीर में मात्रा की दृष्टि से पहला स्थान जल का ही है। विभिन्न अन्तः कोशिका द्रवों तथा बाह्य द्रवों का निर्माण जल से ही होता है। रक्त का माध्यम भी जल है।


                    शरीर निर्माणक तत्वों की प्राप्ति के साधन 


प्रोटीन- दूध, दही, पनीर, अण्डा, माँस, सोयाबीन, सूखे मेवे, मूँगफली, दालें, सेम  आदि। 
 
कैल्शियम - पनीर, अण्डा, हरी सब्जियाँ, दूध, दही। 

फास्फोरस - पनीर, अण्डा, यकृत, गुर्दा, सोयाबीन, दालें व साबुत अनाज, दूध, दही। 

लोहा - यकृत, हरी पत्ती वाली सब्जियाँ, मुन्नका, बाजरा, खजूर, सेव, केला आदि। 

आयोडीन - प्याज, समुद्री घास, तथा  समुद्री मछली। 

जल - शुद्ध जल, रसीले फल व सब्जियाँ, दूध व  अन्य पेय पदार्थ। 

                                          



                           

Tuesday 21 March 2023

पोषक तत्वों के आधार पर भोजन का वर्गीकरण

                पोषक तत्वों के आधार पर भोजन का वर्गीकरण 






भोजन शरीर में प्रमुख तीन कार्यों - शरीर निर्माण, ऊर्जा प्रदान करना तथा सुरक्षा प्रदान करना को सम्पन्न करता हैं। 
प्रायः प्रत्येक भोज्य पदार्थ में कुछ न कुछ विशिष्ट पोषक तत्वों का समावेश होता हैं जो उक्त कार्यों को पूर्ण करने में सहायक होतें हैं। शरीर की वृद्धि, विकास, कार्य संचालन और स्वास्थ्य के लिए निम्नलिखित पाँच तत्व अनिवार्य हैं। 
1- कार्बोज
2 - वसा
3- प्रोटीन 
4- विटामिन
5- खनिज लवण। 
  
भोजन के उक्त पोषक तत्वों के माध्यम से शरीर अपने कार्यों का सम्पादन करता हैं। अतः व्यक्ति के सन्तुलित भोजन में इन सभी पोषक तत्वों की आवश्यक मात्रा उपस्थित होना अनिवार्य हैं। वे सभी पोषक तत्व विभिन्न पदार्थों से प्राप्त होते हैं। आहार आयोजन करते समय इन पोषक तत्वों को प्रदान करने वाले भोज्य पदार्थों को दैनिक आहार में अनिवार्य रूप से स्थान दिया जाना चाहिये। 
            
                    उक्त पोषक तत्वों के आधार पर भोज्य पदार्थों को निम्नलिखित समूहों में बाँटा जा सकता है। 

1- कार्बोजयुक्त भोज्य पदार्थ-

   कार्बोज के अन्तर्गत दो पोषक तत्व निहित होते हैं- शर्करा और श्वेतसार। शर्करायुक्त भोज्य पदार्थों के अन्तर्गत चीनी,गुड़, शहद, मिठाई, मुरब्बा और जैम- जैली आदि आते हैं। तथा श्वेतसार भोज्य पदार्थों में चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, राई, आलू, रतालू, शकरकन्द, अरबी आदि आते हैं।  

2- वसायुक्त भोज्य पदार्थ -

       वसायुक्त भोज्य पदार्थों के अन्तर्गत घी, चर्बी, मक्खन, क्रीम,पनीर, वनस्पति, तेल, मूँगफली, मलाई,तिलहन, सूखेमेवे , गोश्त आदि आते हैं। 


3- प्रोटीनयुक्त भोज्य पदार्थ- 

        प्रोटीन हमें प्राणिज्य भोज्य पदार्थ और वानस्पतिक भोज्य पदार्थ द्वारा प्राप्त होता हैं। प्रोटीनयुक्त भोजन पदार्थों में सभी प्रकार के माँस, मछली, यकृत, अण्डा, दूध, दूध से बने खाद्य पदार्थ, गेहूँ के अंकुर, दालें ( चना, मसूर, मटर आदि ) सूखी सेम, सोयाबीन,आलू, गाजर, शलजम, मेवे, गिरी वाले फल एवं तिलहन ( मूँगफली, नारियल, तिल ) आदि आते हैं। 



4- खनिज लवणयुक्त भोज्य पदार्थ 

        खनिज लवणयुक्त भोज्य पदार्थ की श्रेणी के अन्तर्गत माँस, मछली, अण्डा, यकृत, दूध समस्त तृणधान्य, दालें, सेम, मटर, तिलहन, हरी पत्ती वाली सब्जियाँ , कंद मूल वाली सब्जियाँ आदि आती हैं। 



5- विटामिनयुक्त भोज्य पदार्थ

        वैसे तो प्रायः सभी सब्जियों में एवं अन्य खाद्य पदार्थों में कोई न कोई विटामिन मिल जाता है किन्तु दूध तथा दूध से बने पदार्थ, माँस, मछली, यकृत अण्डे, सब्जी, रसदार व अन्य फल, आंवला और सूखे मेवे आदि में विटामिन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते हैं। 











 

Friday 17 March 2023

भोजन का वर्गीकरण

                                     भोजन का वर्गीकरण 

                                          भोजन का वर्गीकरण दो आधार पर किया जा सकता हैं | 


1- पोषक तत्वों के आधार पर,
2- कार्यानुसार | 


                            कार्यानुसार भोजन का वर्गीकरण 

निर्माणकारी भोजन

1- प्रोटीन - माँस, मछली, अण्डा, पनीर, दूध, दही, दालें, बीज, मेवे  तथा अनाज | 
2- खनिज लवण- कैल्शियम, दूध, पनीर, हरी सब्जी | लोहा, माँस, मछली, अण्डा,दालें, सूखे फल, हरी सब्जियाँ
 आदि | 
 

शक्तिवर्धक ऊर्जा प्रदान करने वाले भोजन 

1- शर्करा- चीनी, गुड़ | 
2- स्टार्च- अनाज, आलू, शकरकन्द, केला | 
3- वसा-  घी, मक्खन, तेल, क्रीम, पनीर, सूखे मेवे | 


नियामक या सुरक्षात्मक भोजन 

1- विटामिन - माँस,  मछली का तेल, हरी- पीली सब्जियाँ रसीले फल, बीज, अनाज, मक्खन, दूध, अण्डा, क्रीम | 
2- खनिज लवण - हरी सब्जियाँ, मेवे, फल, दूध | 



  

Wednesday 15 March 2023

भोजन के कार्य

                         भोजन के कार्य 

भोजन के कार्यों को हम निम्नलिखित भागों में बाँट सकतें हैं .                       

1-शारीरिक कार्य (physiological function)

ऊर्जा प्रदान करना ,
नए तंतुओं का निर्माण करना व उनकी टूट-फूट की मरम्मत करना,
शरीर को रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास करना 

2-मनोवैज्ञानिक कार्य (psychological function)

आधुनिक मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न अनुसंधानों के आधार पर यह सिद्ध किया है कि भोजन केवल क्षुधा शांत करने तथा शरीर के पोषण का ही कार्य नहीं करता अपितु वह व्यक्ति की अनुभूतियों को व्यक्त करने का एक उत्तम साधन हैं, एक गृहिणी के द्वारा उत्तम तरीके से पकाये जाने के बाद भोजन को किसी अतिथि के सम्मुख कलात्मक रूप से प्रस्तुत करना जहाँ उस गृहिणी को आत्मिक सुख पहुँचाता हैं वहीं उसकी स्वस्थ मनोवृत्ति एवं भावनाओं का प्रदर्शन भी करता हैं 

3-सामाजिक कार्य (social function)

मानव एक सामाजिक प्राणी हैं, जिस तरह एक परिवार की रचना कुछ सदस्यों द्वारा होती हैं ठीक उसी प्रकार समाज की रचना परिवारों व कुटुम्बों के द्वारा होती हैं, व्यक्ति आपस में भावनाओं का आदान-प्रदान करके अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाये रखता हैं, इस आदान- प्रदान का एक माध्यम भोजन भी हैं जिसके द्वारा व्यक्ति प्रेम, मित्रता, सहयोग आदि भावनाओं को प्रदर्शित करता हैं| समाज में कुछ विशेष अवसरों पर जैसे विवाह, दीपावली व अन्य त्योहारों पर व्यक्ति हर्ष कों प्रदर्शित करने के लिए भोजन को माध्यम बनाता है, इसके अलावा कुछ विशेष दुखद अवसरों पर भी दान-दक्षिणा व ब्राह्मण भोज कराने की प्रथा प्राचीन काल से प्रचलित हैं| 
भारत एक संस्कृति प्रधान देश हैं- यहाँ अनेकता में एकता के दर्शन होतें हैं जहाँ भिन्न-भिन्न जाति प्रदाय, संस्कृति व समुदाय के व्यक्तियों का निवास है तथा इनके खान-पान में काफी भिन्नता हैं, इस तरह इनके भिन्न-भिन्न भोजन के द्वारा इनकी जाति, भोजन से संबन्धित मान्यताओं आदि का ज्ञान होता हैं 



Tuesday 14 March 2023

भोजनका अर्थ व परिभाषा


 भोजन मानव जीवन की सर्वप्रथम अनिवार्यता भोजन को शब्दों में परिभाषित करना निश्चित रूप से आसान कार्य नहीं हैं  चैंबर्स डिक्शनरी में भोजन का अर्थ निम्लिखित शब्दों में समझाया गया हैं जो व्यक्ति खाता हैं भोजन वह हैं जो पचाया जा सकें 

हम भोजन को इस प्रकार परिभाषित कर सकतें हैं शरीर द्वारा ग्रहण किये जा सकने तथा पचाने योग्य वह सभी पदार्थ भोजन कहे जा सकते हैं जो व्यक्ति की शारीरिक वृद्धि एवं विकास की प्रगति में सहायक भी हैं  

 भोजन हमारे शरीर को पोषित करता हैं किन्तु भोजन कहा सकने वाला हर पदार्थ भिन्न भिन्न पोषण योग्यता रखता है एक ही पदार्थ विभिन्न जीवों के लिए गृहणीय अथवा अग्रहणीय हो सकता हैं 

भोजन की उचित परिभाषा  

वे पदार्थ जो शरीर में गृहण किये जाने के पश्चात ऊर्जा उत्तपन्न करते हो,नए तन्तुओं का निर्माण तथा पुराने  टूटे - फूटे ऊतकों की मरम्मत करतें हों, शारीरिक क्रियाओं पर नियंत्रण तथा शरीर के लिए आवश्यक यौगिकों के बनाने में सहयोग प्रदान करते हों, भोजन कहलाते हैं 

Wednesday 15 February 2017

खनिज तत्व (Mineral Elements)





                            खनिज तत्व (Mineral Elements)


                                    कोबाल्ट (Cobalt)

कोबाल्ट विटामिन 'बी 'का अंश है। फेफड़ों में ऑक्सीजन ग्रहण किये जाने क्रिया में कोबाल्ट की उपस्थिति सहायक होती हैं। इसकी कमी के अभी किसी रोग की सम्भावना का पता नहीं लगा हैं। 



                                मैंगनीज (Manganese)

यह तत्व कार्बोहाइड्रेट,प्रोटीन व वसा के चयापचय में काम करने वाले एन्जाइम को क्रियाशील बनाता है। मैंगनीज के अभाव में प्रजनन क्षमता घटती है तथा बच्चे जन्म लेते भी हैं वे अल्प समय तक ही जीवित रह पाते हैं। अस्थि विकास ठीक नहो पाने के कारण शारीरिक विकृति आ जाती है। 
शरीर में बाँझपन आ जाता है। 
मैंगनीज की उपस्थिति अनाज,दाल,सरसों के पत्ते,नीबू,सन्तरा व बादाम आदि में रहती है। 

कार्य :

1)- यह तत्व संतानोतपत्ति व पिट्यूरी गर्भावस्था के हार्मोनों को प्रभावित करता हैं। 
2)- यह ऊतकों में उत्तपन्न कार्बनडाइ-ऑक्साइड को फेफड़ों तक पँहुचाने में सहायक भूमिका अदा करता हैं। 




                                 फ्लुओरिन (Fluorine)



फ्लुओरिन दाँतों की केरीज (Caries)रोगों से रक्षा करने का कार्य करता है। यद्यपि इसकी काफी कम मात्रा आवश्यक होती है ,परन्तु दाँत व अस्थियों में यह विभिन्न संक्रामक व कैरिज रोगों को रोकने में सहायक हैं। 
      आहार में इसकी कम मात्रा होने से द्न्तक्षरण या दाँतों में काला पदार्थ जमना प्रारंभ हो जाता है। आहार में इसकी मात्रा अधिक होने पर दाँत स्वस्थ नहीं रह पाते। यह अवस्था दन्त फ्लोरोसिस (DentalFluorosis)की 
कहलाती हैं। 
       दाँतों की शक्ति व चमक जाती रहती है। दाँत चूने की तरह सफेद लगने लगते हैं व सरलता से टूट जातें है। दाँतो का एनामेल (Enamel)भाग खुरदरा हो जाता है। दाँतों में गडढे से मालूम होते है। फ्लुओरिन की अधिक समय तक अधिकता भूख कम क्र देती है जिसका प्रभाव अस्थियों में भी पड़ता है। 
        इस प्रकार फ्लुओरिन की मात्रा (0.5 PPM)भी नुकसानदायक है तो अधिक मात्रा (3-5 PPM)भी। इसकी सन्तुलित व औसत मात्रा (1-2 PPM)
ही लेनी चाहिए। 

प्राप्ति के स्रोत :

जल फ्लुओरिन की प्राप्ति का उत्तम स्रोत है। मृदु जल फ्लुओरिन से मुक्त रहता है। जबकि कठोर जल में इसकी कुछ मात्रा उपस्थित रहती है। समुद्री मछली व चाय में इसकी कुछ मात्रा पायी जाती है। स्थान विशेष की मिट्टी व जल में फ्लुओरिन होने पर वहाँ उगने वाली तरकारियों में भी यह तत्व पाया जाता है। दूध व अनाज में भी इसकी अल्प मात्रा उपस्थित रहती है। 





                                        जस्ता (Zinc)


जस्ते की उपस्थिति यकृत,अस्थियों दाँत व पक्वाशय ग्रन्थि में उपस्थित रहती है। रक्त प्लाज्मा या सीरम में भी इसकी कुछ मात्रा पायी जाती है। 

कार्य :

1)- यह तत्व सन्तानोत्तपत्ति व पिट्यूटरी ग्रन्थि के हार्मोनों को प्रभावित करता है। 
2)- यह ऊतकों में उत्तपन्न कार्बनडाई-ऑक्साइड को फेफड़ों तक पहुँचाने में सहायक भूमिका निभाता है। 
3)-जस्ते की न्यून मात्रा ही पर्याप्त रहती है। लगभग 10-15 मिग्रा जस्ता आहार में आवश्यक होता है। 
4)- समुद्री जन्तु तथा वनस्पतियों में यह तत्व प्रचुर मात्रा में मिलता है। दूध,यकृत,अण्डा,खमीर में भी कुछ मात्रा जस्ता की रहती है। 












                                       

                                      

Friday 11 November 2016

आयोडीन (Iodine)



खनिज तत्वों के ट्रेस तत्व (Trace Elements)

आयोडीन (Iodine)



गर्दन में उपस्थित थॉयराइड ग्रन्थि का स्त्राव थायरोक्सिन (Thyroxin)का एक आवश्यक घटक आयोडीन के रूप में पाया जाता है। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में 20-25 मिग्रा तक आयोडीन उपस्थित रहता है। यह शरीर के भाग का 00004%भाग या शरीर में पाये जाने वाले खनिज लवणों का 100वाँ हिस्सा होता है।       थॉयराइड ग्रन्थि के स्त्राव के रूप में सर्वप्रथम 1915 से इसे कैण्डल ने पहचाना। इस ग्रन्थि का स्त्राव थायरोक्सिन एक अन्तःस्त्रावी हार्मोन है जो बच्चे के विकास व वृद्धि में प्रमुख कार्य करता है। आयोडीन की कमी से इस ग्रन्थि से थायरोक्सिन कम मात्रा में स्त्रावित होता है,जिसके फलस्वरूप ग्रन्थि फूल जाती है। ऐसी स्थिति में सूजन को गलगण्ड (Goitre)या घेंघा कहते है। यह रोग बहुधा लड़कियों व स्त्रियों में देखने को मिलता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)के वैज्ञानिकों के अनुसार विश्व में लगभग 200 मिलियन लोग इस तत्व की कमी से पीड़ित है। 



आयोडीन के कार्य -



1)- आयोडीन युक्त थायरोक्सिन शरीर की वृद्धि व विकास के लिए एक आवश्यक हार्मोन है। इसकी कम मात्रा स्त्रावित होने से कण्ठमाल या घेंघा (Goitre)रोग हो जाता है। अधिक समय तक ऐसी स्थिति होने पर बच्चों में शरीरिक व मानसिक वृद्धि बिलकुल रूक जाती है। व्यक्ति बड़ा होने पर भी  बच्चे के कद का रह जाता है। चेहरा भी बदशक्ल हो जाता है। यह स्थिति क्रेटिनिज्म (Cretinism)कहलाती है। 
2)- किशोरी बालिकाओं तथा गर्भावस्था में महिलाओं को आयोडीन की पर्याप्त मात्रा न मिल पाने पर घेंघा होने की सम्भावना रहती है। 
3)- आयोडीन थायरोक्सिन हार्मोन के माध्यम से कोशिकाओं में ऑक्सीकरण की दर को भी निश्चित करता है। अधिक स्त्रवण होने से ऊर्जा चयापचय की दर बढ़ जाती है ,फलस्वरूप अधिक ऊर्जा विमुक्त होती है। यह अधिक ऊर्जा ताप के रूप में पायी जाती है। थायरोक्सिन के कम स्त्रावण से चयापचय की गति मन्द पड़ जाती है। 
4)- आयोडीन की कमी से बाल न तो लम्बाई में बढ़ते है और न ही नये निकलते है। 
5)- थायरोक्सिन शरीर में कोलेस्ट्रोल संश्लेषण की मात्रा को भी प्रभावित करता है। इसके कम स्त्राव से कोलेस्ट्रोल स्तर सामान्य से बढ़ जाता है तथा अधिक होने से कोलेस्ट्रोल स्तर सामान्य से कम हो जाता है। 
6)- आयोडीन की कमी से प्रौढ़ व्यक्ति भी प्रभावित होते है। वे सुस्त हो जाते हैं  तथा हाथ -पाँव में सूजन आ जाती है। 


आयोडीन प्राप्ति के साधन -




आयोडीन साधारण भोज्य पदार्थों में बहुत कम मात्रा पाया जाता हैं। आयोडीन युक्त भूमि में उपजे फल,अनाज व सब्जियों में इसकी मात्रा पायी जाती है अर्थात जिस स्थान पर मिट्टी में व पानी में आयोडीन है इन स्थान पर उपजे फल व सब्जियों में भी आयोडीन की मात्रा आ जाती हैं। यही कारण हैं कि समुद्र तट पर या पास के इलाकों में पैदा की गई वनस्पति व जन्तु पदार्थो में आयोडीन की उपस्थिति अधिक रहती हैं। समुद्र घास , समुद्री मछली व प्याज में इसकी मात्रा अधिक रहती हैं। साधारण भोज्य पदार्थों से आयोडीन की मात्रा उपलब्ध न हो जाने के कारण एक सरल तरीका यह खोजा गया हैं कि साधारण खाने के नमक में आयोडीन मिश्रित कर नमक बनाया गया हैं जिससे आयोडीन की प्राप्ति सम्भव व सरल हो गयी हैं। प्रायः ऐसे नमक टाटा जैसे बड़ी कंपनियों ने बनाये हैं। बाजार में  (Iodized Salt)के रूप में यह उपलब्ध रहते हैं। 

Tuesday 13 September 2016

ताँबा (Copper)


         

    खनिज तत्वों के ट्रेस तत्व (Trace Elements)

                 ताँबा (Copper)



शरीर में समस्त ऊतकों में ताँबे की अल्प मात्रा में उपस्थिति होती है। रक्त में उपस्थित ताँबा भोजन के साथ संयुक्त होकर हीमोक्यूपिन (Haemocuprin)के रूप में लाल रक्त कणिकाओं में रहता है। इसी प्रकार प्लाज्मा में सेरुलोप्लाज्मिन (Ceruloplasmin)के यौगिक के रूप में ताँबा उपस्थित रहता है। सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में 100से 150 मिग्रा. ताँबे की उपस्थिति रहती है। 



मानव शरीर में ताँबे के कार्य -



1)- ताँबा हीमोग्लोबिन के निर्माण में एक उत्प्रेरक (Catalyst)के रूप में सहायक होता है। 
2)- शरीर में लोहे के अवशोषण व चयापचय में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है। 
3)- फैटी एसिड के ऑक्सीकरण में सहायक होता है। 
4)- एस्कार्बिक एसिड (विटामिन 'सी ')के ऑक्सीकरण में सहायक है। 
5)- त्वचा को स्वाभाविक रंग प्रदान करने में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है। ताँबे की कमी बालों को श्वेत रंग का बना देती है। 




ताँबे की प्राप्ति स्रोत -



ताँबे की उपस्थिति माँस,यकृत,अनाज,कुकुरमुत्ता,कॉफी,कोको व दूध में रहती है। माता के दूध की अपेक्षा गाय के दूध में इसकी मात्रा कम रहती है। ताँबे के बर्तन में भरा हुआ पानी पीने से भी इसकी मात्रा शरीर में पहुँचती है। 







Tuesday 16 August 2016

लोहा (Iron)





                  खनिज तत्वों के ट्रेस तत्व (Trace Elements)  

                                       लोहा (Iron)


लोहे की उपस्थिति हमारे शरीर में बहुत कम मात्रा में आवश्यक होती हैं परन्तु इसकी उपस्थिति अत्यन्त अनिवार्य हैं। एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में लगभग 4 ग्राम लोहा रहता है। शरीर में पाये जाने वाले लोहे का 70%भाग रक्त की हीमोग्लोबिन में,4%माँसपेशियों में,25%अस्थि मज्जा,यकृत वृक्कों व प्लीहा (spleen)में तथा 1%रक्ता प्लाज्मा तथा एन्जाइम में उपस्थित रहता है। 




शरीर में लोहे के कार्य :


1)- रक्त निर्माण का कार्य  


रक्त कणिकाओं में हीमोग्लोबिन एक आवश्यक भाग है ,जो लोहा (Haem)व ग्लोबिन (Globin)नामक प्रोटीन के संयोग से बनता है। लोहे की अधिकांश मात्रा इसी रूप में शरीर में उपस्थित रहती है। 


2)- शरीर में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइ -ऑक्साइड का संवाहक -


लौह लवण का मुख्य जैविक कार्य ऑक्सीजन व कार्बन डाइ -ऑक्साइड का परिवहन करना है। 



लोहे की प्राप्ति के स्रोत -


अंडा,माँस ,मछली ,यकृत आदि लोहे के साधन हैं। फलों में सेव ,अनार ,आड़ू ,खुमानी ,किशमिश ,अँगूर ,मुनक्का आदि में लोहे की पर्याप्त मात्रा मिलती है। गाढ़े रंग के मीठे पदार्थ (Molasses)जैसे गुड़ ,खजूर ,मुनक्का आदि लोहे की प्राप्ति के अच्छे स्रोत हैं। विभिन्न गहरे हरे रंग की पत्तेदार सब्जियों में लोहे की प्रचुर मात्रा रहती है। अण्डे के पीले भाग में सफेद भाग की अपेक्षा अधिक लोहा रहता है। साबुत अनाज में ही पर्याप्त रहता है। दूध व पनीर में लोहे की मात्रा नगण्य ही रहती है। 

Sunday 19 June 2016

सोडियम (Sodium) क्लोरीन (Chlorine) गन्धक (Sulphur)





                 खनिज तत्वों के मेजर तत्व (Major Elements)

                                सोडियम (Sodium)


इस खनिज लवण की पूर्ति आहार में यौगिक के रूप में सोडियम क्लोराइड (साधारण नमक )द्वारा की जाती है। सोडियम क्लोराइड या साधारण नमक सोडियम का एक यौगिक है। सामान्य स्वस्थ प्रौढ़ व्यक्ति के शरीर में 100 ग्राम सोडियम तत्व उपस्थित रहता है। शरीर की समस्त बाह्य कोशकीय द्रवों और प्लाज्मा आदि में यह उपस्थित रहता है। 


सोडियम के कार्य :


1)- सोडियम शरीर में अम्ल व क्षारीय स्थिति में सन्तुलन बनाये रखने में सहायक होता है। 
2)- शरीर के ऊतक द्रवों व प्लाज्मा के रसाकर्षण दबाब को नियन्त्रित करना है। शरीर में उचित जल सन्तुलन बनाये रखने में भी इसकी भूमिका रहती है। 
3)- ह्रदय की माँसपेशियों के संकुचन व नाड़ी ऊतकों की संवेदन शक्ति को नियमित रखता है। ह्रदय की धड़कन को सामान्य बनाये रखता है। 


सोडियम प्राप्ति के स्रोत :


सोडियम प्राप्ति का अच्छा स्रोत खाने का नमक है। गाजर,चुकन्दर,पालक ,दूध,पनीर,माँस,अण्डा में भी सोडियम अल्प मात्रा में रहती है। अनाजों में इसकी उपस्थिति अति अल्प मात्रा में रहती है। 


दैनिक आवश्यकता :


खाने का नमक सोडियम प्राप्ति का अच्छा साधन हैं।  प्राय : 2-6 ग्राम सोडियम की मात्रा हम अपने आहार में प्रतिदिन लेते हैं। 






                                           क्लोरीन (Chlorine)


शरीर में अम्ल व क्षार की स्थिति का सन्तुलन बनाये रखने में भी सहायक होता है। उचित शारीरिक बाढ़ की लिए भोजन में क्लोरीन की उपस्थिति अनिवार्य है। आमाशय से निकलने वाले हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का यह संगठन करता है। 
     प्रायः क्लोरीन की अधिकांश मात्रा भोजन में नमक के द्वारा ली जाती हैं।  जन्तु भोज्य पदार्थ जैसे -पनीर , अण्डा व सूअर के माँस में इसकी उपस्तिथि अधिक मात्रा में होती हैं।  वनस्पति फल व सब्जियों में यह काफी कम मात्रा में पाया जाता है। भोजन के द्वारा हम प्रतिदिन 3-8 ग्राम तक क्लोरीन क्लोरीन की मात्रा ग्रहण करते हैं। 





                                       गन्धक (Sulphur)


गन्धक त्वचा,बाल व नाखून के लिए महत्त्वपूर्ण होता है। 
      प्रोटीन युक्त आहार में गन्धक की प्राप्ति पर्याप्त मात्रा में हो जाती है। मूँगफली,पनीर व दालें आदि इसके अच्छे साधन हैं। 
       



Monday 4 April 2016

मैग्नीशियम (Magnesium) पोटेशियम (Potassium)





                  खनिज तत्वों के मेजर तत्व (Major Elements)

                               मैग्नीशियम (Magnesium)



समस्त शरीर में पाये जाने वाले मैग्नीशियम का 70% भाग अस्थियों व दाँतो में तथा शेष भाग जल ऊत्तकों में प्रोटीन के साथ उपस्थित रहता हैं। एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में लगभग 20-30 प्रतिशत तक मैग्नीशियम की उपस्थिति रहती हैं।  माँसपेशियों में मैग्नीशियम की उपस्थिति कैल्शियम से तीन ग्राम तक अधिक रहती हैं।  


मैग्नीशियम के कार्य :


1)- मैग्नीशियम शरीर की अनेक रासायनिक प्रतिक्रियाओं में महत्वपूर्ण योगदान देता हैं। कार्बोहायड्रेट व प्रोटीन चयापचय में महत्वपूर्ण कार्य करता हैं। 
2)- शरीर में कैल्शियम व फास्फोरस का उचित समन्वय बनाये रखने में मैग्नीशियम महत्वपूर्ण कार्य करता हैं। 
3)- माँसपेशियों व नाड़ी ऊतकों की शक्ति संबर्द्धन में सहायता करता हैं। 


मैग्नीशियम के प्राप्ति स्रोत :


दाल,अनाज,हरी सब्जियाँ,केला,खजूर आदि में मैग्नीशियम उपस्थित रहता हैं। दूध व दूध से बने पदार्थो में इसकी मात्रा काफी कम रहती हैं। 





                              पोटेशियम (Potassium)



पोटेशियम खनिज लवण की उपस्थिति अन्त: कोशिक्रिय द्रवों, लाल रक्त कणिकाओं व माँसपेशियों में रहती हैं। नित्य प्रति के आहार द्वारा इसकी 1.5-6.00ग्राम तक मात्रा लेना पर्याप्त रहता हैं। 


पोटेशियम के कार्य: 


पोटेशियम विशेष रूप से हृदय धड़कन की गति को नियमित रखने का कार्य करता हैं। माँसपेशियों के संकुचन,नाड़ी ऊतकों की संवेदन शक्ति बनाये रखने में पोटेशियम सहायक भूमिका निभाता हैं। 


पोटेशियम के प्राप्ति स्रोत:


दूध व दूध से बने पदार्थो में पोटेशियम तत्व पाया जाता हैं। रसदार फलों जैसे---नीबू,संतरा आदि में पोटेशियम तत्व उपस्थित रहते हैं। मक्का के आटे तथा चावल की ऊपरी पर्त में इसकी अल्प मात्रा रहती हैं। कुछ सब्जियों व फलों जैसे---खीरा,ककड़ी,टमाटर,आड़ू तथा अंगूर में भी यह पाया जाता हैं। आलू तथा आलू चिप्स में भी इस तत्व की उपस्थिति रहती हैं। 
   समस्त वनस्पति भोज्य पदार्थो में पोटेशियम उपस्थित रहता हैं। चाय,काफी,कोको,चावल की सफेदी में इसकी अधिकता होती हैं। 





Friday 18 March 2016

फॉस्फोरस (Phosphorus)





खनिज तत्वों के मेजर तत्व (Major Elements)

               फॉस्फोरस (Phosphorus)


शरीर में खनिज तत्वों की कुल उपस्थिति का 1/4 भाग फॉस्फोरस का रहता हैं। प्रायः कैल्शियम तत्वों के बाद फॉस्फोरस की ही मात्रा अधिकतम होती है। फॉस्फोरस का अधिकतम 80% भाग हड्डियों व दाँतों में कैल्शियम के साथ ही पाया जाता है और शेष 20% भाग शरीर के कोमल व  तरल ऊतकों में रहता है। एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में 400 से 700 ग्राम तक फॉस्फोरस की उपस्थिति एक फास्फेट के रूप में रहती है। 



फॉस्फोरस के कार्य :



1)-उच्च ऊर्जा बन्धकों (High Energy Bond )का निर्माण करने में सहायक। 
2)- अस्थियों व दाँतों के निर्माण में सहायक। 
3)- अम्ल व क्षार के सन्तुलन में नियन्त्रण। 
4)- आवश्यक शारीरिक यौगिकों का भाग। 
5)- पोषक तत्वों के अवशोषण व परिसंचरण में सहायक। 



फॉस्फोरस प्राप्ति के स्रोत :



वैसे तो कैल्शियम व फॉस्फोरस की उपस्थिति भोज्य पदार्थों में साथ ही साथ होती है,परन्तु फॉस्फोरस कैल्शियम की अपेक्षा खाद्य पदार्थों में आसानी से मिल जाता है। सामान्यतः शरीर में फॉस्फोरस का अभाव कम ही पाया जाता है। प्रोटीन युक्त आहार में फॉस्फोरस भी उपस्थित रहता है। फॉस्फोरस प्रोटीन के साथ संयुक्त होकर फास्फो प्रोटीन के रूप में दूध की प्रोटीन केसीन में उपस्थित रहता है। अण्डे के पीले भाग में न्यूक्लियो प्रोटीन में फॉस्फोरस की मात्रा रहती है। विभिन्न वसाओं में फोस्फोलिपिड और कार्बोहाइट्रेट में फोस्फोरिक एस्टर के रूप में यह उपस्थित रहता है। विभिन्न अनाज,दालों,महुए व तिल के बीजों में फाइटिन व फाइटिक एसिड के रूप में फॉस्फोरस उपस्थित रहता है। 
      फॉस्फोरस के उत्तम स्रोत हैं -दूध,पनीर,अण्डे की जर्दी,माँस,मछली,यकृत व साबुत अनाज आदि। यकृत में फॉस्फोरस अधिक मात्रा में पाया जाता है। बिना पालिश किये अनाजों की फॉस्फोरस फाइटिक एसिड के रूप में होने के कारण इसका पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता। फल व सब्जियों में फॉस्फोरस की कम मात्रा रहती है। 



Monday 22 February 2016

कैल्शियम (Calcium)




खनिज तत्वों के मेजर तत्व (Major Elements)


             कैल्शियम (Calcium)



समस्त खनिज तत्वों में कैल्शियम की मात्रा सर्वाधिक होती है। शरीर भार का कुल 2%भाग कैल्शियम का बना होता हैं। सभी खनिज तत्वों की कुल मात्रा का आधा भाग अकेला कैल्शियम ही होता है। एक प्रौढ़ व्यक्ति के शरीर में कैल्शियम 1200 ग्राम तक होता है। कैल्शियम का 99%भाग शरीर के दाँत व अस्थियों को सुदृढ़ता प्रदान करने में तथा 1%भाग शरीर के तरल व कोमल ऊतकों को बनाने में व्यय होता है। इसके अतिरिक्त कैल्शियम की कुछ मात्रा पसीने द्वारा भी उत्सर्जित कर दी जाती है। 
            कैल्शियम की आवश्यकता होने पर शरीर में उपस्थित कैल्शियम के प्रत्येक अंश का शरीर भली भाँति प्रयोग करता है। स्वस्थ व्यक्ति की कैल्शियम अवशोषण क्षमता दुर्बल व्यक्ति की अपेक्षा अधिक रहती है। प्रायः बाल्यावस्था में 1 लीटर दूध की मात्रा अपेक्षित कैल्शियम की पूर्ति कर पाने में समर्थ होती है। 
             आहार नाल का अम्लीय माध्यम कैल्शियम अवशोषण में सहायक होता है। इसी तरह विटामिन 'डी ' व 'सी ' की उपस्थिति कैल्शियम अवशोषण की मात्रा को बढ़ा देते हैं। इसके विपरीत वसा व सैल्यूलोज रेशों की मात्रा,ऑक्जेलिक एसिड,फाइटिक एसिड आदि की मात्रा कैल्शियम अवशोषण में विघ्न पैदा करती है। ऑक्जेलिक एसिड कैल्शियम के साथ संयुक्त होकर कैल्शियम ऑक्जेलेट बनाता है जो अवशोषित नहीं हो पाता। पालक,चुकन्दर,कोको में ऑक्जेलिक एसिड उपस्थित रहता है। पालक कैल्शियम का अच्छा स्रोत है लेकिन फिर भी ऑक्जेलिक एसिड की उपस्थिति के कारण इसके कैल्शियम का उपयोग न के बराबर है इसी प्रकार फाइटिक एसिड जो अनाज के ऊपरी छिलकों में उपस्थित रहता है,कैल्शियम के साथ संयुक्त होकर अघुलनशील लवण बना देता है जिससे इसका अवशोषण नहीं हो पाता। 



कैल्शियम का अवशोषण तथा चयापचय 


कैल्शियम तत्व का अवशोषण छोटी आँत में होता है और रक्त परिवहन द्वारा शरीर विभिन्न भागों में इसकी पूर्ति की जाती है। शरीर में अतिरिक्त कैल्शियम हड्डियों में संग्रहित कर लिया जाता है और कैल्शियम की जब रक्त में मात्रा कम हो जाती है तो हड्डियों में से कैल्शियम निकल कर रक्त में आ जाता है,परन्तु दाँतों में प्रयुक्त कैल्शियम ज्यों का त्यों रहता है। वह स्थायी रूप से प्रयुक्त हो जाता है। हड्डियों में कैल्शियम लगातार आता -जाता रहता है। इसी कारण हड्डियों को 'कैल्शियम का भण्डार 'कहा जाता है। शरीर में पेराथायराइड ग्रन्थि (Parathyroid Gland)अपने हार्मोन द्वारा रक्त में कैल्शियम की मात्रा पर नियन्त्रण रखती है। पैराथायरॉइड हार्मोन रक्त में कैल्शियम की मात्रा 
9-11 मिग्रा /100 मि.ली.बनाये रखती है जो कैल्शियम अवशोषित नहीं हो पाता उसे मूत्र व मल द्वारा निष्कासित कर दिया जाता है। 



कैल्शियम के कार्य 

कैल्शियम शरीर में निम्नलिखित प्रमुख कार्य करता है -

1)- अस्थियों के निर्माण में सहायक 
2)- दाँतों के निर्माण में सहायक 
3)- रक्त का जमना 
4)- वृद्धि में सहायक 
5)- कार्बोहाइड्रेट,वसा व प्रोटीन के पाचन में प्रयुक्त क्रियाओं में उत्प्रेरक की भाँति कार्य 
6)- संवेदना प्रेषण में सहायक 
7)- कोशिका भित्ति की पारगम्य क्षमता को नियन्त्रित करना 
8)- हृदय स्पन्दन व माँसपेशियों की क्रियाओं के नियन्त्रण में सहायक 




कैल्शियम प्राप्ति के प्रमुख स्रोत 


कैल्शियम का प्रमुख स्रोत दूध है। यह दूध ताजा,मक्खन निकला,पाउडर तथा मट्ठा आदि के रूप में हो सकता है। दूध के बिना कैल्शियम की पूर्ति सम्भव नहीं। दूध में कैल्शियम अकार्बनिक लवण के रूप में मिलता है जो रक्त में शीघ्रता से अवशोषित हो जाती है। दूध का प्रति उत्तम प्रकार का होता है। कार्बोहाइट्रेट (लेक्टोज )भी शीघ्र पाचन योग्य होता है। सूखे दूध में विटामिन 'डी 'की भी उपस्थिति पायी जाती है। 

खाद्य -पदार्थ     

                                

1)- दूध एवं दूध से बनी वस्तुएँ 


गाय का ताजा दूध                                     
भैंस का ताजा दूध                                       
बकरी का ताजा दूध                                    
गाय के दूध का दही                                   
पनीर                                                      
भैंस के दूध का खोया                                

2)- अनाज 


रागी      
                                                 

3)-दालें                                                                                                               

                                      
मूँग की दाल                                        
अरहर की दाल                                     
चने की दाल
उरद की दाल                                        

4)- काष्ठफल और तेल वाले बीच 


तिल                                                 
बादाम                                               

5)- पत्ते वाली हरी सब्ज़ियाँ 


गाजर की पत्ती                                   
पुदीना                                              
करी की पत्ती                                    
संझना की पत्ती                               

6)- माँस 

सूखी हुई छोटी मछली                    





Monday 8 February 2016

खनिज तत्वों के कार्य (BENEFITS OF MINERAL ELEMENTS)




खनिज तत्वों के कार्य :



खनिज तत्वों के शरीर निर्माणक कार्य (Constructive Work)


1)- दाँत व अस्थियों के निर्माण करने व उन्हें सुदृढ़ बनाए रखने में जैसे -कैल्शियम,फॉस्फोरस व मैग्नीशियम आदि तत्व। 
2)- कोमल ऊतकों के निर्माण में जैसे -फॉस्फोरस तथा गन्धक तत्व। 
3)- रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन के निर्माण में जैसे-लोहा,ताँबा व कैल्शियम भी रक्त के संगठन में सहायक होते हैं।
4)- थायरोक्सिन हार्मोन का निर्माण करने जैसे -आयोडीन। 


खनिज तत्वों के शरीर नियामक कार्य (Regulatory)


1)- कुछ खनिज तत्वों की प्रकृति अम्लीय होती है तथा कुछ की प्रकृति क्षारीय। इनके अम्लीय या क्षारीय होने के कारण ही ये शरीर में अम्ल व क्षार का सन्तुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं। 
2)- कुछ खनिज तत्व जैसे -सोडियम,पोटेशियम,क्लोरीन आदि शरीर में जल की मात्रा में सन्तुलन बनाए रखते हैं। 
3)- कुछ खनिज तत्व माँसपेशीय तन्तुओं की संकुचन क्रिया में मदद करते हैं। 
4)- कुछ खनिज तत्व विभिन्न पोषक तत्वों के चयापचय को सुचारू रूप से संचालित करने में सहायक भूमिका निभाते हैं। 
5)- नाड़ियों की संवेदना शक्ति को सुचारू बनाए रखने का कार्य खनिज तत्वों का ही हैं। 

Wednesday 3 February 2016

शरीर निर्माणक भोज्य तत्व -खनिज लवण (Body Building Nutrient-Mineral Elements)



शरीर निर्माणक भोज्य तत्व -खनिज लवण 

(Body Building Nutrient-Mineral Elements)


शरीर में जल,कार्बोहाइड्रेट,वसा व प्रोटीन के अतिरिक्त कुछ और अकार्बनिक तत्व भी सूक्ष्म मात्रा में उपस्थित रहते हैं जो मानव की विभिन्न चयापचयी (Metabolic)क्रियाओं में सहायक होते हैं जिन्हें खनिज लवण (Mineral Elements)कहा जाता हैं। यह शरीर में 4% भार की पूर्ति करते हैं तथापि शरीर में इनकी उपस्थिति बहुत अनिवार्य है। ये तत्व शरीर की वृद्धि व निर्माण की क्रियाओं में सहायक भूमिका अदा करते हैं। ये खनिज तत्व भूमि में उपस्थित होते हैं। मिट्टी में भी विभिन्न पादप वनस्पति उगते हैं जो जल के साथ ही इन लवणों को अपनी जड़ द्वारा भूमि से शोषित कर लेते हैं। जब जान्तव इन वनस्पतियों को खाते हैं तो ये खनिज लवण उनके शरीर में पहुँच जाते हैं। इस प्रकार भूमि से प्राप्त खनिज तत्व वनस्पति स्रोत से अन्ततः मानव शरीर में पहुँच जाते हैं जो मानव मृत्यु के साथ ही पुनः मिट्टी में आ जाते हैं। ये खनिज तत्व अकार्बनिक होते हैं,अर्थात इनमें कार्बन की उपस्थिति नहीं होती। 


विभिन्न प्रकार के खनिज लवण 


शरीर के लिए आवश्यक पाँच तत्व - कार्बोहाइट्रेट,वसा,प्रोटीन,विटामिन व जल की भाँति ये भी अनिवार्य व आवश्यक तत्व हैं। ये प्रायः शरीर की निर्माणी,स्वास्थ्य संबंधी व अन्य जीवनदायिनी क्रियाओं के संचालन में आवश्यक होते हैं। शरीर के लिए आवश्यक कुल 24 खनिज तत्वों की उपस्थिति का पता अभी तक लग पाया हैं। ये खनिज तत्व निम्नलिखित हैं। 

1-कैल्शियम 

2-फास्फोरस 

3-पोटेशियम 

4-सोडियम 

5-सल्फ़र (गन्धक )

6-मैग्नीशियम 

7-लोहा 

8-मैंग्नीज 

9-ताँबा 

10-आयोडीन 

11-कोबाल्ट 

12-जिंक (जस्ता )

13-एल्युमिनियम 

14-आसेंनिक 

15-ब्रोमीन 

16-क्लोरीन 

17-फ्लुओरिन 

18-निकिल 

19-क्रोमियम 

20-कैडमियम 

21-सैलेनियम 

22-सिलिकन 

23-मालिबॉडेनम 

24-क्लोराइड्स 



कुछ खनिज तत्वों की उपस्थिति शेष तत्वों से अधिक होती हैं जबकि कुछ खनिज तत्व न्यून मात्रा में आवश्यक होते हैं। कैल्शियम,फॉस्फोरस,पोटेशियम,क्लोरीन,सोडियम व मैग्नीशियम आदि ऐसे तत्व है जिनकी शरीर में अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है इसलिए इन्हें मेजर तत्व (Major Elements)कहा जाता है। जबकि कुछ तत्व जैसे -लोहा,ताँबा,मैग्नीज,आयोडीन आदि कम मात्रा में ही शरीर के लिए आवश्यक होते  है ये ट्रेस तत्व (Trace Elements)कहलाते हैं। शरीर में इनकी बहुत कम मात्रा आवश्यक होती है फिर भी इनके महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। इनकी उपस्थिति आवश्यक हैं। 



Thursday 26 November 2015

वसा में घुलनशील विटामिन- विटामिन 'के '(Vitamin 'K')





वसा में घुलनशील विटामिन 

विटामिन 'के '



विटामिन 'के ' की खोज सर्वप्रथम डॉ. डेम (Dr. Dam)ने 1933 में की थी। उन्होंने प्रयोगों द्वारा सिद्ध किया कि विटामिन 'के ' रक्त स्राव को रोककर रक्त का थक्का जमाने में सहायक होता है। इसी विशेषता के कारण इस विटामिन का नाम रक्त का थक्का जमाने वाला विटामिन (Coagulative Vitamin) या  (Antiheamorrhange Vitamin) भी रखा गया। 



विटामिन 'के 'की प्राप्ति के स्रोत :



विभिन्न वनस्पतियों जैसे गोभी,सोयाबीन,हरे पत्ते वाली सब्जियों में यह मुख्य रूप से पाया जाता हैं। जन्तुओं की आँत में उपस्थित कुछ बैक्टीरिया भी विटामिन 'के 'का निर्माण करते हैं। 



विटामिन 'के ' के कार्य :



इस जीवनसत्व का महत्त्वपूर्ण कार्य रक्त को जमाने की क्रिया (Coagulating of Blood)है। यह रक्त में पाया जाने वाला एक पदार्थ प्रोथ्रोम्बिन (Prothrombin)के संश्लेषण में सहायक होता है। प्रोथ्रोम्बिन थ्रोम्बिन में परिवर्तित होकर फाइब्रिन में बदल जाता है। जिसके कारण रक्त स्राव वाले स्थान पर महीन तन्तुओं का जाल -सा बन जाता है। यह बढ़ते हुए रक्त पर थक्का जमा देता है जिससे रिसते हुए रक्त के रास्ते में रूकावट आ जाती है और रक्त बहना बन्द हो जाता है। इसकी कमी से बहता हुआ रक्त रूकता नहीं है और अधिक समय तक बहता रहता है। 

Monday 2 November 2015

वसा में घुलनशील विटामिन-विटामिन 'ई '(Vitamin'E')




वसा में घुलनशील विटामिन

विटामिन 'ई '


विटामिन 'ई ' मनुष्य व जन्तुओं में प्रजनन संस्थान की क्रियाशीलता हेतु आवश्यक होता हैं। 1922 में ईवान्स व विशप ने चूहों पर अनेक प्रयोग किये और देखा कि कच्ची सब्जियों के तेल में उपस्थित व वसा में घुलनशील यह तत्व चूहों की सन्तानोत्पत्ति में सहायक होता है। सन्तानोत्पत्ति में सहायक इस तत्व को विटामिन 'ई ' का नाम दिया गया। प्रजनन संस्थान के कार्यों को नियन्त्रित करने वाला यह विटामिन बाँझपन को दूर करता है। इसी विशेषता के कारण इसे बाँझपन विरोधी (Anti Sterlity Factor)के रूप में भी जाना जाता है। 



विटामिन 'ई ' प्राप्ति के स्रोत :


विभिन्न अनाजों के भ्रूण के तेल (जैसे -नारियल ,अलसी ,सरसों ,बिनौला )इसकी प्राप्ति के मुख्य साधन हैं। वनस्पति तेलों व वसाओं में इसकी अच्छी मात्रा उपस्थित रहती है। इसके अतिरिक्त यह विटामिन यकृत अण्डा ,अंकुरित ,अनाज ,माँस ,मक्खन में भी पाया जाता है। फल व सब्जियों में इसकी अल्प मात्रा रहती है। 


विटामिन 'ई 'के कार्य :


1)- यह विटामिन प्रजनन क्षमता को विकसित करता है। इसकी कमी से बाँझपन आता है। भ्रूण के विकास में यह विटामिन सहायक कार्य करता है। इसकी कमी से पुरूषों के शुक्राणु (Sperm)का बनना रूक जाता है तथा स्त्री के शरीर में भ्रूण गर्भ में ही मर जाते हैं। 
2)- विटामिन 'ई 'का एक कार्य इसकी ऑक्सीजन प्रतिरोधात्मकता के कारण है। यह विटामिन O2 शीघ्रता से शोषित करके आँखों में विटामिन 'ए 'का ऑक्सीकरण कम करता है। इस प्रकार विटामिन 'ए 'की बचत होती है। विटामिन 'ए 'असंतृप्त वसीय अम्लों का ऑक्सीकरण होने से रोकता है। जिससे चयापचय की गति नियन्त्रित बनी रहती है। 
3)- विटामिन 'ई 'लाल रक्त कणिकाओं के ऑक्सीकारक पदार्थों को टूटने -फूटने से रोकता है और उनकी जीवन अवधि बढ़ाता है।                                                      

Tuesday 29 September 2015

वसा में घुलनशील विटामिन - विटामिन 'डी '(Vitamin 'D')






वसा में घुलनशील विटामिन 


       विटामिन 'डी '


1918 में सर्वप्रथम मैलनवाय (MELLONBY)ने पाया कि चूहों में रिकेट्स रोग की स्थिति में कॉड लिवर ऑयल का उपयोग लाभकारी होता हैं। मैकोलम (MECOLLUM)व उसके सहयोगियों ने अध्ययनों से निष्कर्ष निकाला कि यदि कॉड लिवर ऑयल से विटामिन 'ए 'की मात्रा नष्ट कर दी जाएँ तो भी रिकेट के उपचार में लाभ मिलता है। इससे निष्कर्ष निकला कि विटामिन 'ए 'रिकेट रोग का उपचार करने में सहायक नहीं हैं। रिकेट दूर करने वाले इस पदार्थ (Anti Rachetic Substance)को विटामिन 'डी ' नाम दिया गया। सूर्य की अल्ट्रावॉयलट किरणों के प्रभाव से शरीर में संश्लेषित हो सकने की क्षमता के कारण इसे धूप का विटामिन (Sun Shine Vitamin)
भी कहा जाता हैं। 




विटामिन 'डी ' प्राप्ति के स्रोत :


1)-वनस्पति से :



वनस्पति भोज्य पदार्थों में ये नहीं पाया जाता हैं। 


2)- जन्तुओं में :


यह विटामिन मुख्य रूप से मछली के यकृत के तेल में पाया जाता हैं इसके अतिरिक्त अण्डा,दूध,पनीर में भी इसकी प्राप्ति होती है। 
         विटामिन 'डी ' की कुछ मात्रा हमारे शरीर में धूप द्वारा भी पहुँचती रहती हैं। जब प्रकाश की अल्ट्रावॉयलट किरणें त्वचा में उपस्थित कॉलेस्ट्रोल पर पड़ती हैं तो विटामिन 'डी 'का निर्माण होता है। यही कारण है कि शिशुओं को उनकी माताएँ सुबह मालिश करके धूप में थोड़ी देर लिटा देती हैं। 



विटामिन 'डी ' के कार्य :


1)- विटामिन 'डी 'शरीर में कैल्शियम व फॉस्फोरस के आंत्र में शोषण को नियन्त्रित करता है। विटामिन 'डी 'की कमी से कैल्शियम व फॉस्फोरस का अवशोषण कम हो जाता है जिससे ये तत्व शरीर में मल पदार्थों के साथ उतसर्जित हो जाते हैं। 

2)-विटामिन 'डी 'रक्त में कैल्शियम व फॉस्फोरस की मात्रा नियन्त्रित करता है। अस्थियों में एकत्र कैल्शियम व फॉस्फोरस आवश्यकता पड़ने पर पुनः रक्त में मिल जाता है। विटामिन 'डी 'की कमी से अस्थियों का कैल्शियम व फॉस्फोरस रक्त में निकलने लगते है जिससे रक्त में इनकी मात्रा बढ़ जाती है। 

3)-शरीर की उचित वृद्धि हेतु विटामिन 'डी 'अत्यन्त ही महत्वपूर्ण तत्व है। 

4)- विटामिन 'डी 'मुख्य रूप से अस्थियों के निर्माण में मदद करता हैं। यह अस्थियों को दृढ़ता प्रदान करता है। अस्थियों में कैल्शियम फास्फेट के संग्रहण को नियन्त्रित करता है। इसकी कमी से अस्थियों में कैल्शियम फास्फेट ठीक रूप से संग्रहित नहीं हो पाता और अस्थियाँ मुलायम होकर टूटने लगती हैं। 

5)-विटामिन 'डी ' दाँतों के स्वस्थ विकास हेतु भी आवश्यक है। इसकी कमी से दाँतों के डेन्टीन व ऐनामेल का स्वास्थ्य प्रभावित होता है जिससे दाँत शीघ्र ही खराब हो जाते हैं। 

6)-विटामिन 'डी 'पैराथायराइड ग्रन्थि की क्रियाशीलता को नियन्त्रित करता है। 

7)-यह पेशी और तन्त्रिका तन्त्र को कार्यशील रखता है। 

8)-चेचक और काली खाँसी से बचाव करता है। 


Tuesday 15 September 2015

वसा में घुलनशील विटामिन-विटामिन 'ए '(Vtamin'A')





वसा में घुलनशील विटामिन


विटामिन 'ए '


वसा में घुलनशील विटामिनों में सर्वप्रथम विटामिन 'ए 'की खोज हुई। यह मुख्यतः वनस्पति के हरे रंग क्लोरोफिल से संबंधित है। पीले फल व सब्जियों में पाया जाने वाला कैरटिनोयाड्स वर्णक विटामिन 'ए 'के लिए प्री-विटामिन है। इस विटामिन को रेटिनॉल (retinol)भी कहते हैं। इसे वनस्पतियों में में पाये जाने वाले पदार्थ कैरोटीन (Carotene)से प्राप्त किया जाता हैं। इसे विटामिन Aका प्रीकर्सर कहते हैं। 
          विटामिन A1का सबसे मुख्य स्रोत मछली के यकृत का तेल है। समुद्री मछलियों के यकृत में मुख्यतः विटामिन A1व मीठे पानी की मछलियों के यकृत में विटामिन A2होता हैं 


विटामिन 'ए 'प्राप्ति के साधन :


1)-वनस्पति से - 


वनस्पति से यह उन साग-सब्जियों में पाया जाता है जो पीले व लाल रंग के हों ;जैसे -टमाटर,गाजर,पपीता,शकरकंद,आम,आड़ू,मटर व हरी पत्तेदार सब्जियाँ (धनिया,शलजम,पोदीना,चुकंदर )आदि में। 


2)- जन्तुओं से -


मुख्य रूप से मछली के यकृत के तेल में मिलता हैं। इसके अतिरिक्त यह अण्डा,दूध व मक्खन आदि में पर्याप्त मात्रा में मिलता है। 
      वनस्पति घी का पौष्टिक मूल्य बढ़ाने के लिए उसमें ऊपर से विटामिन 'ए 'मिला दिया जाता हैं। 




विटामिन 'ए 'के कार्य -



1)- विटामिन 'ए 'आँखों की सामान्य दृष्टि के लिए अत्यन्त आवश्यक हैं। यह नेत्रों में उपस्थित रोडोप्सिन (Rhodopsin or visual purple)नामक पदार्थ में प्रोटीन रहित भाग का निर्माण करता हैं। रोडोप्सिन की उपस्थिति सामान्य दृष्टि हेतु अत्यन्त आवश्यक है। विटामिन 'ए ' की अधिक समय तक कमी रहने से रात्रि अन्धापन (Night Blindness)हो जाता है। जिसमें व्यक्ति धीमे प्रकाश (dim night)में कुछ भी देखने में असमर्थ रहता है। 

2)-विटामिन 'ए 'एपिथीलियम ऊतकों की कार्यक्षमता व क्रियाशीलता बनाए रखने में भी सहायक होता हैं। यह श्लेष्मा स्त्राव में सहायक कारकों के निर्माण में सहायता करता हैं,जिससे कि ऊतकों की स्थिरता बनी रहती हैं। यह ऊतक जीभ,नेत्र,श्वसन नली,मुख गुहा,प्रजनन व मूत्र संबन्धी नलियों आदि की आन्तरिक भित्ति का निर्माण करते हैं। 

3)- विटामिन बाह्य त्वचा की कोशिकाओं को चिकना व कोमल बनाए रखती हैं। इसके अभाव में बाह्य त्वचा सूख जाती हैं व दरार पड़ जाती हैं। त्वचा में बाह्य संक्रमण से बचाव करने की क्षमता का ह्रास होता हैं। यह अवस्था ( Keratinnisation)की कहलाती हैं। 

4)- बालकों की सामान्य वृद्धि व विकास में यह वृद्धि वर्ध्दक कारक (Growth Promoting Factor)भाँति कार्य करता हैं। 
5)- विटामिन 'ए 'अस्थियों में दाँतों के विकास में योगदान देता हैं। इसकी कमी से अस्थियाँ लम्बाई में बढ़ना बन्द कर देती हैं। फलस्वरूप अस्थियों की वृद्धि रूक जाती है। विटामिन 'ए 'अपरिपक्व कोशिकाओं को आस्टियोब्लास्ट कोशिकाओं में परिवर्तित करने का कार्य करता है जो कि कोशिकाओं की संरचना बढ़ाता है। यह आस्टियोब्लास्ट के परिवर्तन में भी सहायक होता है जो हड्डी व कोशिकाओं के बढ़ने में सहायक है और वृद्धि काल में पुनः निर्मित की जाती हैं। 

6)- विटामिन 'ए 'की कमी से नेत्रों की बाहरी पर्त कार्निया मुलायम पड़ जाती हैं। इस रोग को कैराटोमलेशिया (Keratomalacia)कहते हैं। 





























Thursday 3 September 2015

मुंबई पाव भाजी (Mumbai Pav Bhaji)













छः व्यक्तियों के लिए :


सामग्री :




ताजे पाव - 12 
आलू (उबले और मैश किए हुए )- 5 मध्यम 
मटर (उबली और मैश की हुई )- 1/4 कप 
फूल गोभी (कसी हुई )- 1/4 कप 
शिमला मिर्च (बारीक़ कटी )- 1 बड़ी 
प्याज (बारीक़ कटा )- 2 मध्यम 
अदरक पेस्ट - 1 छोटी चम्मच 
लहसुन पेस्ट - 1 1/2  छोटी चम्मच 
हरी मिर्च पेस्ट - 1 छोटी चम्मच 
टमाटर (बारीक़ कटे )- 5 मध्यम 
टमाटर प्यूरी - 1/2 कप 
नीबू का रस - 2 टेबलस्पून 
पाव भाजी मसाला - 3 टेबलस्पून 
नमक स्वादानुसार 
मक्खन - 6 टेबलस्पून 
तेल - 3 टेबलस्पून 





विधि :





1)- एक पैन में तेल और तीन टेबलस्पून मक्खन गरम करें,उसमें प्याज डालकर चार से पाँच मिनट तक मध्यम आँच पर भूने ,अदरक,लहसुन और हरी मिर्च पेस्ट डालकर एक मिनट तक भूने। 
2)- टमाटर डालकर चार से पाँच मिनट तक पकाएँ ,उसमें पाव भाजी मसाला और नमक डालकर एक मिनट तक भूने। मटर ,गोभी ,शिमला मिर्च और आलू डालकर मसाले में अच्छी तरह मिलाएँ ,आधा कप पानी डालें और ढक्क्न लगाकर मध्यम आँच पर सात मिनट तक पकाएँ। 

























3)- टमाटर प्यूरी डालकर अच्छी तरह मिलाएँ,ढक्क्न लगाकर चार मिनट तक पकने दें। नीबू का रस और मक्खन डालकर मिलाएँ और एक मिनट तक और पकाएँ। आँच बन्द कर दें। भाजी तैयार हैं। 











4)- नॉन स्टिक तवा गरम करें। पाव को बीच से काटें और मक्खन लगाकर दोनों तरफ से गुलाबी होनें तक सेंकें। 
5)- गरमागरम भाजी गरमागरम पाव के साथ सर्व करें।